मलमास 2023 में कब से शुरू होगा और कब खत्म होगा ?
श्रावण की सोमवती अमावस्या 17 जुलाई को है। उसके अगले दिन यानि 18 जुलाई से मलमास की शुरूआत होगी। जो कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पड़ रही है। मलमास का समापन सावन पूर्णिमा जो 16 अगस्त को पड़ रही है, को होगा। मलमास में पड़ने के कारण इस साल सावन पूर्णिमा को ही मलमास पूर्णिमा भी कहा जायेगा। मलमास पूर्णिमा के बाद से सावन का शुक्ल पक्ष शुरू होगा।
क्या होता है मलमास या अधिमास या पुरुषोत्तम मास ?
अंग्रेजी कैलेंडर में हर साल 12 महीने होते हैं, लेकिन हिंदू पंचांग की गणनाओं के अनुसार हर 3 साल में एक बार एक अतिरिक्त माह होता है अर्थात 13 माह। क्योकि अंग्रेजी कैलेंडर सौर वर्ष पर आधारित होता है जबकि हिन्दू पंचांग में सौर वर्ष और चांद्र वर्ष दोनों की गणनाओं का महत्व होता है। इसलिए सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चन्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक मास या अधिमास या मलमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं।
चूँकि एक सौर-वर्ष में 365 दिन, 15 घड़ी, 22 पल और 57 विपल होते हैं। जबकि एक चांद्रवर्ष में 354 दिन, 22 घड़ी, 1 पल और 23 विपल का होता है। इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष 10 दिन, 53 घड़ी 21 पल (अर्थात लगभग 11 दिन) का अन्तर पड़ता है। इस अन्तर में समानता लाने के लिए चांद्रवर्ष 12 मासों के स्थान पर 13 मास का हो जाता है। इसी को संतुलित करने के लिए एक अधिक मास की गणना की गई , जिसे मलमास या अधिमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं। इसी दिन सूर्य मीन राशि में प्रवेश करता है। चूंकि मीन राशि के स्वामी गुरु ग्रह हैं जो बुद्धि के कारक हैं। ज्योतिषियों की मानें तो सूर्य का मीन राशि में गोचर अलग-अलग राशि वालों को आर्थिक मोर्चे पर थोड़ा परेशान करेगा, तो कुछ को खुशियां प्रदान करेगा। वर्ष 2023 का यह मलमास श्रावण माह में जुड़ रहा है, जिसकी वजह से सावन का महीना 59 दिनों का हो गया है।
क्या है अधिक मास का पौराणिक आधार?

हिंदू धर्म में अधिक मास से जुड़ी एकसर्वविदित पौराणिक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार एक बार हिरण्यकश्यप ने कठोर तप से भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया और उनसे अमरता का वरदान मांगा लेकिन ब्रम्हा जी ने इस वरदान की निषिद्धता के कारण अमरता का वरदान देने में असमर्थता व्यक्त की और उसे कोई और वरदान मांगने को कहा- तब हिरण्यकश्यप बड़ी चतुराई से ब्रह्मा जी से कहा आप ऐसा वरदान दें जिससे संसार का कोई नर-नारी, पशु, देवता, असुर उसे मार ना सके और वर्ष के सभी 12 महीनों में भी उसकी मृत्यु ना हो। .साथ ही उसकी मृत्यु न दिन में हो ना रात को, वह ना किसी अस्त्र से मरे और ना किसी शस्त्र से, उसे न घर के अंदर मारा जा सके और ना ही घर के बाहर।
ब्रह्मा जी ने उसे तथास्तु कहकर ऐसा ही वरदान दिया लेकिन इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर समझने लगा और अपने को भगवान के समान समझने लगा। तब भगवान विष्णु अधिक मास अर्थात मलमास में नरसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए और शाम के समय देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीर कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।
मलमास या अधिक मास में क्या कर सकते हैं और क्या नहीं
मलमास की दृष्टि से जितनी इस मास की निंदा है, पुरुषोत्तम मास की दृष्टि से उतनी ही महिमा भी है। मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मलमास पड़ गया है। चूँकि अधिकमास के अधिपति भगवान विष्णु कहलाते हैं, अतः मलमास में भगवान विष्णु की पूजा होती है। भगवान श्री राम को पुरुषोत्तम भी कहा जाता है जो भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिक मास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है।
हिंदू धर्म में मलमास की दृष्टि अधिक मास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आदि आमतौर पर नहीं किए जाते हैं।
मलमास में तामसिक वस्तुओं जैसे लहसुन, प्याज, मांस, मछली आदि का सेवन वर्जित होता है. इसके अलावा शराब, सिगरेट, बासी भोजन आदि भी नहीं करना चाहिए। इस माह में राई, उड़द की दाल, मसूर दाल, मूली, हर तरह की गोभी, साग, पत्तेदार सब्जी, शहद आदि का सेवन न करें।
अधिक मास में इस पूरे माह में व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन, विष्णु यज्ञ आदि किए जा सकते हैं। जो कार्य पहले शुरु किये जा चुके हैं उन्हें जारी रखा जा सकता है। संतान जन्म के कृत्य जैसे गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत आदि संस्कार किये जा सकते हैं। अगर किसी मांगलिक कार्य की शुरुआत हो चुकी है तो उसे किया जा सकता है। विवाह नहीं हो सकता है लेकिन रिश्ते देख सकते हैं, रोका कर सकते है। मान्यता है पुरुषोत्तम मास होने की वजह से इस माह भगवान विष्णु की पूजा करने पर १० गुना फल प्राप्त होता है।
Related posts:
Why Celebrate Narak Chaturdashi? The Story, Significance, and Benefits of Worship
Unleashing the Chanakya Within You: Timeless Leadership Lessons for Personal and Professional Success
Valentine’s Day: History, Significance, and Modern Perspective
How to Perform Maha Shivratri Puja at Home: Step-by-Step Guide
Hindu New Year 2025: Significance, History, Traditions, and Celebrations
The Spiritual Significance and Story Behind Jyeshtha Mangal